Monday, February 18, 2013

नई पीढ़ी के प्रति मरणासन्न कवि का संबोधन


आगामी पीढ़ी के युवाओं
और उन शहरों की नयी सुबहों को
जिन्हें अभी बसना है
और तुम भी ओ अजन्मों
सुनो मेरी आवाज सुनो
उस आदमी की आवाज
जो मर रहा है
पर कोई शानदार मौत नहीं

वह मर रहा है
उस किसान की तरह
जिसने अपनी जमीन की 
देखभाल नहीं की
उस आलसी बढ़ई की तरह
जो छोड़ कर चला जाता है
अपनी लकड़ियों को
ज्यों का त्यों

इस तरह
मैंने अपना समय बरबाद किया
दिन जाया किया
और अब मैं तुमसे कहता हूं
वह सबकुछ कहो जो कहा नहीं गया
वह सबकुछ करो जो किया नहीं गया
और जल्दी

और मैं चाहता हूं 
कि तुम मुझे भूल जाओ
ताकि मेरी मिसाल तुम्हें पथभ्रष्ट नहीं कर दे
आखिर क्यों
वो उन लोगों के साथ बैठा रहा
जिन्होंने कुछ नहीं किया
और उनके साथ वह भोजन किया
जो उन्होंने खुद नहीं पकाया था
और उनकी फालतू चर्चाओं में 
अपनी मेधा क्यों नष्ट की
जबकि बाहर
पाठशालाओं से वंचित लोग
ज्ञान की पिपासा में भटक रहे थे

हाय
मेरे गीत वहां क्यों नहीं जन्में
जहां से शहरों को ताकत मिलती है
जहां वे जहाज बनाते हैं
वे क्यों नहीं उठे
उस धुंए की तरह
तेज भागते इंजनों से
जो पीछे आसमान में रह जाता है

उन लोगों के लिए
जो रचनाशील और उपयोगी हैं
मेरी बातें
राख की तरह
और शराबी की बड़बड़ाहट की तरह
बेकार होती है

मैं एक ऐसा शब्द भी
तुम्हें नहीं कह सकता
जो तुम्हारे काम न आ सके 
ओ भविष्य की पीढ़ियों
अपनी अनिश्चयग्रस्त उंगलियों से
मैं किसी ओर संकेत भी नहीं कर सकता
क्योंकि कोई कैसे दिखा सकता किसी को रास्ता
जो खुद ही नहीं चला हो
उस पर

इसलिए
मैं सिर्फ यही कर सकता हूं
मैं, जिसने अपनी जिंदगी बरबाद कर ली
कि तुम्हें बता दूं
कि हमारे सड़े हुए मुंह से
जो भी बात निकले
उस पर विश्वास मत करना
उस पर मत चलना
हम जो इस हद तक असफल हुए हैं
उनकी कोई सलाह नहीं मानना
खुद ही तय करना
तुम्हारे लिए क्या अच्छा है
और तुम्हें किससे सहायता मिलेगी
उस जमीन को जोतने के लिए
जिसे हमने बंजर होने दिया
और उन शहरों को बनाने के लिए
लोगों के रहने योग्य
जिसमें हमने जहर भर दिया

-बेर्टोल्ट ब्रेख्ट

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