Sunday, January 1, 2012

यह ताना बाना बदलेगा


गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा
तू खुद तो बदल, तू खुद तो बदल, बदलेगा ज़माना बदलेगा!
रावी की रवानी बदलेगी, सतलज का मुहाना बदलेगा
गर शौक में तेरे जोश रहा, तस्बीह का दाना बदलेगा!
 
यह मुर्दा नुमाइश भूखों की, यह उजड़े चमन बेकारों के
जूठन पे सड़क की जीते हुए शहजादे सुर्ख बहारों के,
यह होली खून पसीनों की, नीलामी हुस्न-हसीनों की
बेजार हो, बेजार हो, यह सारा फ़साना बदलेगा!
गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा!

ऊँचे है इतने महल की हर इंसान का जीना मुश्किल है
मंदिर-मस्जिद की बस्ती में ईमान का जीना मुश्किल है,
रफ़्तार जरा कुछ और बढ़ा, आवाज़ जरा कुछ और बढ़ा
फिर शीशा नहीं, साकी ही नहीं, सारा मयखाना  बदलेगा!
गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा!

सूरज की मशालें थामे हुए, जिस दम कि जवानी चलती है
पूरब से लगातार पश्चिम तक सबकी तक़दीर बदलती है,
तूफान को आँख दिखाने दो, बिजली को तड़प कर आने दो
जीने का तरीका बदलेगा, मरने  का बहाना बदलेगा!
गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा!

तू खुद तो बदल, तू खुद तो बदल, बदलेगा जमाना बदलेगा
रावी की रवानी बदलेगी, सतलज का मुहाना बदलेगा
गर शौक में तेरे जोश रहा , तस्बीह का दाना बदलेगा!
-नीरज 

6 comments:

  1. धन्यावाद ,
    क्या मै जान सकता हुं के इस रचना के रचयता कौन है?
    मेरे पिताजी इस गाने को न जाने कब से खोज रहे है!

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  2. इस रचना के रचयिता नीरज हैं.

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  3. वाह ! बहुत ही शानदार ! धन्य हैं कवि नीरज !

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  4. क्या वही गोपाल दास 'नीरज' जी???

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