Tuesday, June 5, 2012

मौज है पैसे वालों की

मौज है पैसे वालों की
मुश्किल है कंगालो की
दम-दम ऊपर बोली लगती
दिल्ली में दलालों की।


नित नये बाजार, होते हैं तैयार
व्यापारी की भीड़ लगी रहे, बड़े-बड़े साहूकार
ज्यादा पल्लेदार
टंडी-मण्डी टालों की,
कमी नहीं कुछ मालों की
तरह-तरह के भरे नमूने, विक्री घनी कमालों की
मौज हैं...


फैक्ट्री और मील, माल बने लगशील
छोटी-बड़ी कचहरी सूबा, थाना और तहसील
अफसर और वकील
खाते चाँट मसालों की,
ठग जेब तराश चंडालों की
फैशन के मा ऊँची होगी पार्टी रिझालों की
मौज हैं...


रघुनाथ बात भरपूर कहनी पड़े जरूर
कमी भटकते फिरते हैं, ये मेहनतकश मजदूर
भूखे बिना कसूर
दुर्गति हाल बेहालों की,
कानून किताब जंजालों की
हे भगवान दया करिये, अब हद हो गयी कूचालों की
मौज हैं ...




-रघुनाथ

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