| "एशिया
जाग उठा" से |
| 1857 : सामान की
तलाश |
| अकाल
और उसके बाद |
| अखिल
भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ |
| अधिनायक |
| अपने
लिए जिए तो क्या जिए |
| अब
किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार |
| अभी
वही है निज़ामें-कोहना |
| अरे
अब ऐसी कविता लिखो |
| आ कि
वाबस्ता हैं |
| आ गए
यहां जवां कदम |
| आ रे
नौजवान |
| आओ कि
कोई ख़्वाब बुनें |
| आओ
रानी, हम ढोयेंगे पालकी |
| आजादी |
| आज़ादी
कैसी? किसकी? |
| आदमी का
गीत |
| आने
वाले दिन अपने है |
| आप कहते
हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी |
| आप की
हँसी |
| आये
दिन बहार के |
| इंकलाब
चाहिए |
| इंटरनेशनल |
| इतिहास
! |
| इरादे
कर बुलंद |
| इस
बार लड़ाई लाने वाला |
| इसलिए
राह संघर्ष की हम चुनें |
| उदास न
हो |
| उनका
डर |
| उरुजे
कामयाबी पर |
| उषा |
| ऐ
इन्सानों |
| ऐ वतन ऐ
वतन हमको तेरी क़सम |
| और बचे
रहें स्वप्न |
| कचहरी
के मारे का गीत |
| क़त्ले-आफ़ताब |
| कन्या–भ्रूणों
का क़ब्रिस्तान |
| कला
कला के लिए हो |
| कवितापाठ
से पहले एक मिनट का मौन |
| कहाँ
क़ातिल बदलते हैं फ़क़त चेहरे बदलते हैं |
| कहाँ तो
तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये |
| काजू
भुनी प्लेट में ह्विस्की गिलास में |
| कात्तिक
बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का |
| कूद
पड़ी हंजूरी कुएँ में |
| क्या
मिलिए ऎसे लोगों से |
| क्रांति
के लिए |
| क्रान्ति
दावत नहीं |
| ख़तरे में
इस्लाम नहीं |
| ख़ुदा
हमारा है |
| खेलते
मिट्टी में बच्चों की हंसी अच्छी लगी |
| ग़ज़ल
को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में |
| ग़मगीन
अच्छे दिन आने वाले हैं |
| गर
थाली आपकी खाली है |
| गाँव-गाँव
से उठो... |
| गाँव-घर
का नज़ारा तो अच्छा लगा |
| गुफ़्तगू |
| गुलमिया
अब हम नाही बजइबो |
| गुलामी |
| गोली
दागो पोस्टर |
| घन्त
मन्त दुई कौड़ी पा |
| घर
में ठण्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है |
| घिन
तो नहीं आती है |
| चल
आवाम के लश्कर चल |
| चाँद
है ज़ेरे क़दम, सूरज खिलौना हो गया |
| 'चांद
का मुँह टेढ़ा है' से |
| जंग
टलती है तो बेहतर है ! |
| जंगल का
गीत |
| जनता
का आदमी |
| जनरल
तुम्हारा टैंक एक मजबूत वाहन है |
| जाग
तुझको दूर जाना |
| जागा
नया इंसान ज़माना बदलेगा |
| जागा
रे जागा सारा संसार |
| जिन्हें
नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं |
| जिसके
सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है |
| जीवन-लक्ष्य |
| जो
जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है |
| झण्डे
रह जायँगे, आदमी नहीं |
| झांसी की
रानी |
| तटस्थ
के प्रति |
| तब तुम
क्या करोगे? |
| तय
किए सौ रास्ते |
| तरान-ए-आज़ाद |
| तराना |
| ताजमहल |
| तीनों
बन्दर बापू के |
| तुम्हारी
फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है |
| तुम्हारे
पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं |
| तू
जिंदा है |
| तू
ज़िन्दा है .... |
| तोड़ो
बंधन तोड़ो |
| दबेगी कब
तलक आवाज़ -ए -आदम |
| दस्तूर |
| दिमाग़ी
गुहान्धकार का ओरांगउटांग! |
| दिल
खोल कर मातम करें |
| दिलो
में घाव ले के भी चल चलो |
| दूर
तक यादे वतन आई थी समझाने को |
| देखें
क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे |
| देश
की छाती दरकते देखता हूँ! |
| देशगान |
| दोन दिवस
-मराठी कविता |
| दौलत-ए-दुनिया
का हिसाब |
| नदिया
के पार |
| नयी
नस्ल के नाम |
| नवम्बर,
मेरा गहवारा से |
| निर्णय
के बारे में |
| निवाला |
| निसार
मैं तेरी गलियों |
| नींद
में डूबी हुई कमजोरियाँ |
| नेताओं
को न्यौता! |
| पढना-लिखना
सीखो |
| पढ़िए
गीता |
| पतंग |
| परदे
के पीछे |
| पाकिस्तान
का मतलब क्या ? |
| पूंजीवादी
समाज के प्रति |
| प्रेत
का बयान |
| फिरंगी
चले गए |
| फूल |
| बगिया
लहूलुहान |
| बड़ी-बड़ी
कोठिया सजाये पूंजीपतिया |
|
|
| बाढ़
की संभावनाएँ सामने हैं, |
| बात
बोलेगी |
| बेचता
यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को |
| बेरुजगारी
बड़ी बीमारी |
| बोल
अरी ओ धरती बोल |
| बोल
मजूरे हल्ला बोल |
| भड़का
रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम| |
| भूख
के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो |
| भूखी
माँ, भूखा बच्चा |
| भूल-ग़लती |
| मज़दूर
एकता के बल पर |
| मजदूर
का जन्म |
| मध्यम
वर्ग का गीत |
| मध्यवर्ग-
चार कविताएँ |
| मरने दे
बन्धु ! |
| माँ |
| मादाम |
| मिल के
चलो |
| मुक्ति
की आकांक्षा |
| मुक्तिकामी
चेतना अभ्यर्थना इतिहास की |
| मुझे
कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं
|
| मुशीर |
| मेरा रंग
दे बसंती चोला |
| मैं
उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ. |
| मैं न
हारा |
| मौज है
पैसे वालों की |
| मौलाना |
| यह
ताना बाना बदलेगा |
| यह
धरती बहुत मैली हो गई है दोस्त! |
| ये
किसका लहू है कौन मरा |
| ये
क्या हो गया है हमारे शहर को। |
| ये
जंग है जंगे आज़ादी |
| ये
बात ज़माना याद रखे |
| ये
सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा |
| रउरा
शासना के बाटे ना जवाब............. |
| राह
तो एक थी |
| रिश्ते |
| लंदन
में बिक आया नेता |
| लड़ाई
जारी है |
| लाल
है परचम नीचे हँसिया |
| लीक
पर वे चलें |
| ले
मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के |
| वतन
का गीत |
| वतन
को कुछ नहीं ख़तरा |
| वेद
में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं |
| वो
जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है |
| वो सब
कुछ करने को तैयार ... |
| वो
सुबह हमीं से आयेगी |
| वोट |
| व्यंग्य
मत बोलो। |
| शमा
जलाइए |
| सबसे
ख़तरनाक |
| समझदारों
का गीत |
| समय का
पहिया |
| समर
शेष है |
| सरफरोशी
की तमन्ना अब हमारे दिल में है |
| सारी
दुनिया मांगेंगे |
| सिंहासन
खाली करो कि जनता आती है |
| सृष्टि
बीज का नाश न हो |
| हज़ारों
ख़्वाहिशें ऐसी |
| हड़ताल
का गीत |
| हम
चले, हम चले, हम चले |
| हम
जंगे–आवामी से कोहराम मचा देंगे |
| हम
देखेंगे |
| हम मेहनत
करने वाले |
| हमारी
जिन्दगी |
| हर
ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है !... |
| हाँ
वहीं मेरा आशियाना है। |
| हिन्दू
या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये |
| हो गई
है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए |
| हो
सावधान आया तूफ़ान |
| होंगे
कामयाब |
|
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