Monday, November 4, 2024

मैं एक शादीशुदा औरत हूँ! --शाहरुख़ हैदर

मैं एक औरत हूँ 

ईरानी औरत

रात के आठ बजे हैं

यहां ख़याबान सहरूरदी शिमाली पर

बाहर जा रही हूँ रोटियां ख़रीदने

न मैं सजी धजी हूँ 

न मेरे कपड़े ख़ूबसूरत हैं

मगर यहां 

सरेआम

ये सातवीं गाड़ी है...

मेरे पीछे पड़ी है

कहते हैं 

शौहर है या नहीं

मेरे साथ घूमने चलो

जो भी चाहोगी तुम्हें ले दूंगा।

यहां तंदूरची है...

वक़्त साढ़े आठ हुआ है

आटा गूंथ रहा है 

मगर पता नहीं क्यों

मुझे देखकर आंख मार रहा है

नान देते हुए 

अपना हाथ 

मेरे हाथ से मिस कर रहा है!!

ये तेहरान है...

सड़क पार की तो 

गाड़ी सवार मेरी तरफ आया

गाड़ी सवार.. क़ीमत पूछ रहा है

रात के कितने ?

मैं नहीं जानती थी 

रातों की क़ीमत क्या है!!

ये ईरान है...

मेरी हथेलियां नम हैं

लगता है बोल नहीं पाऊंगी

अभी मेरी शर्मिंदगी और रंज का पसीना

ख़ुश्क नहीं हुआ था कि घर पहुंच गई।

इंजीनियर को देखा...

एक शरीफ़ मर्द 

जो दूसरी मंज़िल पर 

बीवी और बेटी के साथ रहता है

सलाम...

बेगम ठीक हैं आप ?

आपकी प्यारी बेटी ठीक है ?

वस्सलाम...

तुम ठीक हो? ख़ुश हो ?

नज़र नहीं आती हो ?

सच तो ये है 

आज रात मेरे घर कोई नहीं

अगर मुमकिन है तो आ जाओ

नीलोफ़र का कम्प्यूटर ठीक कर दो

बहुत गड़बड़ करता है

ये मेरा मोबाइल है

आराम से चाहे जितनी बात करना

मैं दिल मसोसते हुए कहती हूँ

बहुत अच्छा अगर वक़्त मिला तो ज़रूर!!

ये सरज़मीने-इस्लाम है

ये औलिया और सूफ़ियों की सरज़मीन है

यहां इस्लामी क़ानून राइज हैं

मगर यहां जिन्सी मरीज़ों ने

मादा ए मन्विया (वीर्य) बिखेर रखा है।

न दीन न मज़हब न क़ानून

और न तुम्हारा नाम हिफ़ाज़त कर सकता है।

ये है 

इस्लामी लोकतंत्र...

और मैं एक औरत हूँ

मेरा शौहर 

चाहे तो चार शादी करे

और चालीस औरतों से मुताअ

मेरे बाल 

मुझे जहन्नुम में ले जाएंगे

और मर्दों के बदन का इत्र

उन्हें जन्नत में ले जाएगा

मुझे 

कोई अदालत मयस्सर नहीं

अगर मेरा मर्द तलाक़ दे 

तो इज़्ज़तदार कहलाए

अगर मैं तलाक़ मांगू 

तो कहें

हद से गुज़र गई शर्म खो बैठी

मेरी बेटी को शादी के लिए

मेरी इजाज़त दरकार नहीं

मगर बाप की इजाज़त लाज़िमी है।

मैं दो काम करती हूँ

वह काम से आता है आराम करता है

मैं काम से आकर फिर काम करती हूँ

और उसे 

सुकून फ़राहम करना मेरा ही काम है।

मैं एक औरत हूँ...

मर्द को हक़ है कि मुझे देखे

मगर ग़लती से अगर 

मर्द पर मेरी निगाह पड़ जाए

तो मैं आवारा और बदचलन कहलाऊं।

मैं एक औरत हूँ...

अपने तमाम पाबंदी के बाद भी औरत हूँ

क्या मेरी पैदाइश में कोई ग़लती थी ?

या वह जगह ग़लत थी जहां मैं बड़ी हूई ?

मेरा जिस्म 

मेरा वजूद

एक आला लिबास वाले मर्द की सोच और 

अरबी ज़बान के चंद झांसे के नाम बिका हुआ है।

अपनी किताब बदल डालूं 

या

यहां के मर्दों की सोच

या 

कमरे के कोने में क़ैद रहूं ?

मैं नहीं जानती...

मैं नहीं जानती 

कि क्या मैं दुनिया में

बुरे मुक़ाम पर पैदा हुई हूँ

या बुरे मौके पर पैदा हुई हूँ।

 


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