Sunday, January 1, 2012

दिलो में घाव ले के भी चल चलो

चले चलो दिलो में घाव ले के भी चल चलो
चलो लहूलुहान  पांव ले के भी चले  चलो

चलो की आज साथ-साथ चलने की ज़रूरतें
चलो की खत्म हो जाएं जिंदगी की हसरतें
 
      ज़मीन, ख्वाब जिंदगी, यकीन सबको बांटकर
      वो चाहते हैं बेबसी में आदमी झुकाये सर
      वो चाहते हैं जिंदगी हो रौशनी से बेखबर
      वो एक-एक करके अब जला रहे हैं हर शहर
      जले हुए घरों के ख्वाब ले के चलो
      चले चलो ...


वो चाहते हैं बांटना दिलों के सारे वलवले
वो चाहते हैं बांटना ये जिंदगी के काफिले
वो चाहते हैं खत्म हो उम्मीद के ये सिलसिले
वो चाहते हैं गिर सके लूट के ये सब किले
सवाल ही है अब जवाब ले के भी चले चलो
चले चलो ...


      वो चाहते हैं जातियों की बोलियों की फूट हो
      वो चाहते हैं धर्म को तबाहियों की छूट हो
      वो चाहते हैं जिंदगी ये हो फरेब, झूठ हो
      वो चाहते हैं जिस तरह भी हो मगर ये लूट हो
      सिरों पे जो बची है छांव ले के भी चले चलो
              चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो
-ब्रजमोहन  

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