मिल के चलो, मिल के चलो, मिल के चलो!
चलो भई, मिल के चलो, मिल के चलो, मिल के चलो!
ये वक्त की आवाज़ है, मिल के चलो
ये जिंदगी का राज़ है, मिल के चलो
मिल के चलो ...
आज दिल की रंजिशे मिटा के आ,
आज भेदभाव सब मिटा के आ,
आजादी से है प्यार , जिन्हें देश से है प्रेम,
कदम कदम से और दिल से दिल मिला के आ.
मिल के चलो ...
यह भूख क्यों, ये ज़ुल्म का है जोर क्यों?
जोर क्यों, जोर क्यों ?
यह जंग-जंग-जंग का है शोर क्यों?
शोर क्यों, शोर क्यों ?
हर एक नज़र बुझी-बुझी हर एक दिल उदास
बहुत फरेब खाए, अब फरेब और क्यों?
मिल के चलो ...
जैसे सुर से सुर मिले हो राग के,
राग के राग के
जैसे शोले मिल के बढे आग के,
जैसे शोले मिल के बढे आग के,
आग के आग के
जिस तरह चिराग से मिले चिराग,
जिस तरह चिराग से मिले चिराग,
ऐसे चलो भेद तेरा-मेरा त्याग के,
मिल के चलो ...- प्रेम धवन
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