Sunday, January 1, 2012

चल आवाम के लश्कर चल


चल आंधी चल अंधड़ चल
चल तूफ़ान बवंडर चल
चल गरीब के लश्कर चल
चल आवाम के लश्कर चल
नारों से गरीबी नहीं मिटेगी
चल अब इस पर करे अमल.

हर दिन नयी-नयी  बातें, हर दिन नयी-नयी घातें
नयी रौशनी लाने वाले, ले आये काली रातें
इस परिवर्तन के नए दौर में चलो मचा दे उथलपुथल
चल आवाम के लश्कर चल, चल गरीब के लश्कर चल!

भटक रही दर-दर तरुणाई, आसमान छूती मंहगाई
जितने गड्ढे पाटे जाते उतनी गहरी होती खाई
लूट शोषण के डेरे हैं, झपट रहे हैं टिड्डीदल
चल आवाम के लश्कर चल, चल गरीब के लश्कर चल!

छीन ले रोटी छीन ले काम, बिना लक्ष्य कैसा विश्राम
धन और धरती बंट के रहेगी, भेद की खाई पट के रहेगी
आस्तीन के सांपो के फन डालो रे इस बार कुचल
चल आवाम के लश्कर चल, चल गरीब के लश्कर चल!

बहुत सह लिया अब ना सहेंगे, जो कहना है साफ़ कहेंगे
नए दौर में चलसकेगा, बढ़ा कारवां रुक सकेगा
ठोकर से राह बना डालें, डालें युग की तस्वीर बदल
चल आवाम के लश्कर चल, चल गरीब के लश्कर चल!
-मानसिंह राही

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