Thursday, November 17, 2011

आ रे नौजवान

आ रे नौजवान
आ रे नौजवान तेरी बेड़ियाँ रही हैं टूट
क्रांति का नया कदम बढ़ा
क्रांति का नया कदम बढ़ा

बढ़ रहा है आज तेरा कारवाँ
सर झुका रहा जमीन को आसमां
राह की सफों को तूने कर लिया है पार
सामने की मंजिलें रहीं तुझे पुकार
उठ गुलाम उठ गुलाम
उठ गुलाम जिंदगी के बंधनों को तोड़ दे
चल सुबह की रौशनी में डगमगाना छोड़ दे| आ रे नौजवान…

अब सुना न जुल्म की कहानियां
दांव पर लगा दे नौजवानियाँ
ख़त्म हो चली हैं ऐशो-हुक्मारानियाँ
ख़त्म हो चली हैं ये वीरानियाँ
उठ गुलाम उठ गुलाम
उठ गुलाम जिंदगी के बंधनों को तोड़ दे
चल सुबह की रौशनी में डगमगाना छोड़ दे| आ रे नौजवान…

-इप्टा

1 comment:

  1. आभार साथी विक्रम, इस गीत का पोस्टर बनाने के लिये मैं इसे कल से याद कर रहा था. पहली दो पंक्तियों से आगे आज थोड़ा सा और याद आया और फिर उसके आगे का पूरा गीत अचानक आपके सौजन्य से मिल सका. - आपका गिरिजेश

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