Thursday, November 17, 2011

अभी वही है निज़ामें-कोहना

अभी वही है निज़ामें-कोहना अभी तो ज़ुल्मों-सितम वही है
अभी मैं किस तरह मुस्कुराऊं अभी तो रंजो-अलम वही है!


नए ग़ुलामों अभी तो हाथों में है वही कास-ए-गदाई
अभी तो ग़ैरों का आसरा है अभी तो रस्मो-करम वही है!


अभी कहाँ खुल सका है परदा अभी कहाँ तुम हुए हो उरियाँ
अभी तो रहबर बने हुए हो अभी तुम्हारा भरम वही है!


अभी तो जम्हूरियत के साए में आमरीयत पनप रही है
हवस के हाथों में अब भी क़ानून का पुराना क़लम वही है!


अभी वही हैं उदास राहें वही हैं तरसी हुई निगाहें
शहर के पैग़म्बरों से कह दो यहाँ अभी शामे-ग़म वही है!


मैं कैसे मानूँ कि इन ख़ुदाओं की बन्दगी का तिलिस्म टूटा
अभी वही पीरे-मैक़दा है अभी तो शेख़ो-हरम वही है!



-खलीलुर्रहमान आज़मी

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