Sunday, November 27, 2011

बोल मजूरे हल्ला बोल

बोल मजूरे हल्ला बोल
काँप रही सरमाएदारी खुलके रहेगी इसकी पोल
बोल मजूरे हल्ला बोल!

ख़ून को अपने बना पसीना तेने बाग लगाया है
कुँए खोदे नहर निकाली ऊँचा महल उठाया है
चट्‌टानों में फूल खिलाए शहर बसाए जंगल में
अपने चौड़े कंधों पर दुनिया को यहाँ तक लाया है,
बाँकी फौज कमेरों की है, तू है नही भेड़ों का गोल!
बोल मजूरे हल्ला बोल!

गोदामों में माल भरा है, नोट भरे हैं बोरों में
बेहोशों को होश नही है, नशा चढ़ा है जोरों में
ऐसे में तू हाँक लगा दे- ला मेरी मेहनत का मोल!
बोल मजूरे हल्ला बोल!

सिहर उठेगी लहर नदी की, दहक उठेगी फुलवारी
काँप उठेगी पत्ती-पत्ती, चटखेगी डारी डारी,
सरमाएदारों का पल में नशा हिरन हो जाएगा
आग लगेगी नंदन वन में सुलग उठेगी हर क्यारी
सुन-सुनकर तेरे नारों को धरती होगी डाँवाडोल!
बोल मजूरे हल्ला बोल! 



-कांतिमोहन 'सोज़'

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