Saturday, November 10, 2012

दीवाली के दीप जले


नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले
शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले
                      धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के
                      लहराये वो आंचल धानी दीवाली के दीप जले
नर्म लबों ने ज़बानें खोलीं फिर दुनिया से कहन को
बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले
                      लाखों-लाखों दीपशिखाएं देती हैं चुपचाप आवाज़ें
                      लाख फ़साने एक कहानी दीवाली के दीप जले
निर्धन घरवालियां करेंगी आज लक्ष्मी की पूजा
यह उत्सव बेवा की कहानी दीवाली के दीप जले
                     लाखों आंसू में डूबा हुआ खुशहाली का त्योहार
                     कह ता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले
कितनी मंहगी हैं सब चीज़ें कितने सस्ते हैं आंसू
उफ़ ये गरानी ये अरजानी दीवाली के दीप जले
                    मेरे अंधेरे सूने दिल का ऐसे में कुछ हाल न पूछो
                   आज सखी दुनिया दीवानी दीवाली के दीप जले
तुझे खबर है आज रात को नूर की लरज़ा मौजों में
चोट उभर आई है पुरानी दीवाली के दीप जले
                  जलते चराग़ों में सज उठती भूके-नंगे भारत की
                  ये दुनिया जानी-पहचानी दीवाली के दीप जले
भारत की किस्मत सोती है झिलमिल-झिलमिल आंसुओं की
नील गगन ने चादर तानी दीवाली के दीप जले
                 देख रही हूं सीने में मैं दाग़े जिगर के चिराग लिये
                 रात की इस गंगा की रवानी दीवाली के दीप जले
जलते दीप रात के दिल में घाव लगाते जाते हैं
शब का चेहरा है नूरानी दीवाले के दीप जले
                जुग-जुग से इस दुःखी देश में बन जाता है हर त्योहार
                रंजोख़ुशी की खींचा-तानी दीवाली के दीप जले
रात गये जब इक-इक करके जलते दीये दम तोड़ेंगे
चमकेगी तेरे ग़म की निशानी दीवाली के दीप जले
               जलते दीयों ने मचा रखा है आज की रात ऐसा अंधेर
               चमक उठी दिल की वीरानी दीवाली के दीप जले
कितनी उमंगों का सीने में वक़्त ने पत्ता काट दिया
हाय ज़माने हाय जवानी दीवाली के दीप जले
                लाखों चराग़ों से सुनकर भी आह ये रात अमावस की
                तूने पराई पीर न जानी दीवाली के दीप जले
लाखों नयन-दीप जलते हैं तेरे मनाने को इस रात
ऐ किस्मत की रूठी रानी दीवाली के दीफ जले
                ख़ुशहाली है शर्ते ज़िंदगी फिर क्यों दुनिया कहती है
                धन-दौलत है आनी-जानी दीवाली के दीप जले
बरस-बरस के दिन भी कोई अशुभ बात करता है सखी
आंखों ने मेरी एक न मानी दीवाली के दीप जले
               छेड़ के साज़े निशाते चिराग़ां आज फ़िराक़ सुनाता है
               ग़म की कथा ख़ुशी की ज़बानी दीवाली के दीप जले

-फिराक गोरखपुरी 

No comments:

Post a Comment