Wednesday, May 15, 2013

काश ऐसा हो सहमी आंखों में


काश ये बेटियां बिगड़ जाएं
इतना बिगड़ें के ये बिफर जाएं
उन पे बिफरें जो तीर-ओ-तेशा लिए
राह में बुन रहे हैं दार ओ रसन
और हर आजमाइश – ए -दार -ओ – रसन
इनको रस्ते की धूल लगने लगे 

काश ऐसा हो अपने चेहरे से 
अंचलों को झटक के सबसे कहें 
ज़ुल्म की हद जो तुमने खेंची थी 
उसको पीछे कभी का छोड़ चुके 

काश चेहरे से खौफ का ये हिजाब
यक-ब-यक इस तरह पिघल जाएं
तमतमा उठे ये रुख ए रोशन
दिल का हर तार टूटने सा लगे

काश ऐसा हो सहमी आंखों में
कहर की बिजलियां कड़क उठें
और मांगे ये सारी दुनिया से
एक-एक करके हर गुनाह का हिसाब
वोह गुनाह जो कभी किये ही नहीं
और उनका भी जो जरूरी हैं

काश ऐसा हो मेरे दिल की कसक
इनके नाजुक लबों से फूट पड़े

- गौहर रज़ा

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