Saturday, April 5, 2014

सब कुछ बदलता है



सब कुछ बदलता है,
कानून का पहिया बदल जाता है
बिना थमे.

बारिस के बाद बढ़िया मौसम.

पलक झपकते ही
संसार उतार देता है
अपने मैले कपड़े.

दस हजार मीलों तक
फैला है भूदृश्य
बेल-बूटों से सुसज्जित.

मुलायम धुप,
मद्धम हवाएं, मुस्कुराते फूल.

ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से झरती पत्तियाँ
एक साथ चहक उठे सारे पंछी.

मनुष्य और पशु जाग उठे नवजीवन ले कर.
इससे बढ़ कर क्या हो सकता है प्राकृतिक?

दुःख के बाद आती है खुशी.
खुशी, किसी के लिये जेल से रिहाई जैसी.
--हो ची मिन्ह (अनुवाद- दिगम्बर)

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