Monday, September 19, 2011

तराना

दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे!

ऐ ज़ुल्म के मातों लब खोलो चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे!

ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे!

अब टूट गिरेंगी जंजीरें अब ज़िन्दानों की ख़ैर नहीं
जो दरया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे!

कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे!

-फैज अहमद 'फैज'

No comments:

Post a Comment