दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे!
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे!
ऐ ज़ुल्म के मातों लब खोलो चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे!
ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे!
अब टूट गिरेंगी जंजीरें अब ज़िन्दानों की ख़ैर नहीं
जो दरया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे!
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे!
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे!
ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे!
अब टूट गिरेंगी जंजीरें अब ज़िन्दानों की ख़ैर नहीं
जो दरया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे!
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे!
-फैज अहमद 'फैज'
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