Monday, September 19, 2011

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


          सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
          देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।



ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।



        आज फिर मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
        क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।



वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।



       रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
       लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।



खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।



       अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
       एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है.



-रामप्रसाद बिस्मिल्‍ल

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