बिजलियों का जहाँ निशाना है
हाँ वहीं मेरा आशियाना है।
खूब पहचानता हूँ मैं ग़म को
मेरे घर उसका आना-जाना है।
आँधियाँ तेज़तर हुई जातीं
दीप की लौ को टिमटिमाना है।
शर्त ये है कि लब हिले भी नहीं
और सब हाल भी बताना है।
तेरी मुस्कान है लबों पे मेरे
उम्र भर तुमको गुनगुनाना है।
सारे इल्जा़म मैंने मान लिये
अब तुम्हें फैसला सुनना है।
है यहाँ आज कल कहीं होंगे
हम परिन्दों का क्या ठिकाना है।
खोया-खोया-सा सदा रहता है
उसका अन्दाज़ शायराना है।
-वशिष्ठ अनूप
हाँ वहीं मेरा आशियाना है।
खूब पहचानता हूँ मैं ग़म को
मेरे घर उसका आना-जाना है।
आँधियाँ तेज़तर हुई जातीं
दीप की लौ को टिमटिमाना है।
शर्त ये है कि लब हिले भी नहीं
और सब हाल भी बताना है।
तेरी मुस्कान है लबों पे मेरे
उम्र भर तुमको गुनगुनाना है।
सारे इल्जा़म मैंने मान लिये
अब तुम्हें फैसला सुनना है।
है यहाँ आज कल कहीं होंगे
हम परिन्दों का क्या ठिकाना है।
खोया-खोया-सा सदा रहता है
उसका अन्दाज़ शायराना है।
-वशिष्ठ अनूप
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