Tuesday, October 11, 2011

ख़ुदा हमारा है


ख़ुदा तुम्हारा नहीं है ख़ुदा हमारा है
उसे ज़मीं पे ये ज़ुल्म कब गवारा है


लहू पियोगे कहाँ तक हमारा धनवानो
बढ़ाओ अपनी दुकान सीम-ओ-ज़र के दीवानो
हमें यक़ीं है के इन्सान उसको प्यारा है


ख़ुदा तुम्हारा नहीं है ख़ुदा हमारा है
उसे ज़मीं पे ये ज़ुल्म कब गवारा है


नई शऊर की है रोशनी निगाहों में
इक आग-सी भी है अब अपनी सर्द आहों में
खिलेंगे फूल नज़र के सहर की बाहों में
दुखी दिलों को इसी आस का सहारा है


ख़ुदा तुम्हारा नहीं है ख़ुदा हमारा है
उसे ज़मीं पे ये ज़ुल्म कब गवारा है


तिलिस्म-ए-स्याह-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास तोड़ेंगे
क़दम बढ़ाएँगे ज़ंजीर-ए-यास तोड़ेंगे
कभी किसी के न हम दिल की आस तोड़ेंगे
रहेगा याद जो एह्द-ए सितम गुज़ारा है
उसे ज़मीं पे ज़ुल्म कब गवारा है


ख़ुदा तुम्हारा नहीं है ख़ुदा हमारा है
उसे ज़मीं पे ये ज़ुल्म कब गवारा है


-हबीब जालिब

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