Wednesday, October 25, 2017

जिसे वे भगवान की लीला कहते हैं

कितना खूबसूरत और जानलेवा है बर्फ.
सड़कें समा गयी हैं इसकी सुरंग में.
बिना बिजली-पानी हजारों हजार लोग
जमी हुई दुनिया में जहाँ भेड़ियों के झुण्ड
की तरह हुंआ-हुंआ करती है हवा.
पहले ही बेइन्तेहाँ हैं ठण्ड से हो रही मौतें
जिसका मतलब है फटे-पुराने कम्बल में
किकुडते, ठिठुरते लोगो की जमघट,
कंपकंपाते बच्चे बंद कर देते हैं कांपना
ठण्ड से अकड़कर समा जाते हैं मौत के मुँह में.
ऊपर से गुजरते बिजली के तारों को
जमीन में दाबना बहुत खर्चीला है,
कहते हैं बिजली कम्पनी के अधिकारी,
जो नहीं झेलते बिजली-पानी का आभाव,
जिन्हें दुबकना नहीं पड़ता ठन्डे अँधेरे में.
आभाव का कोई असर नहीं जिन पर, आभाव
से मरते नहीं जो लोग, वही लेते हैं फैसले.
हम यकीन नहीं करते जलवायु परिवर्तन में
और यही नहीं, लागत और मुनाफे का
अनुपात हमें मुनाफा भी तो देता है.
कृषि व्यापारियों के पानी चुराने और
रिहायशी इलाकों में लॉन की हरियाली के कारण
पड़नेवाला सूखा. घटिया दर्जे के बांधों के चलते
बहते-ढहते मकान. न्यू ओर्लियांस में होता है
पुनर्निर्माण धनाढ्यों और पर्यटकों के लिये
सड़ने और मातम मानने दो गरीब बस्तियों को.
बीमा कम्पनी को आशा है कि उनके भुगतान
की तारीख आते-आते आप बूढ़े हो जायेंगे.
राजनेता दाबे बैठे हैं पुनर्निर्माण का पैसा.
और हम कहते हैं इसे प्राकृतिक आपदा.
– मार्ज पियर्सी

(अमरीकी कवियत्री मार्ग पियार्सी के अठारह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
यह कविता मंथली रिव्यू से आभार सहित लिया गया है. अनुवाद- दिगम्बर)

No comments:

Post a Comment