Friday, December 15, 2017

रिसेप्सनिस्ट अपनी डेस्क के पास बैठी है और गुनगुनाती है सॉलिडेरिटी गीत

हम एक नयी दुनिया को जन्म देंगे
पुरानी दुनिया की राख से

मैं एक सोन मछरी हूँ जिसे पकड़ा तुमने
ठण्डी बारिश के दौरान
सेवारवाले एक बड़े तालाब से.
मेरे माँस ने देखे धरती के चारों कोने.
मैं रसीली हूँ.
मेरे शल्क चमकते हैं
तुम्हारी पनीली भूरी आँखों में.
मैं मुस्तैदी से सजाई हुई नुमाइशी चीज हूँ
जो तुम्हारे फोन सुनती है,
टाइप करती है तुम्हारे टैक्स बचत की रिपोर्ट
शर्दियों की यात्रा.
स्वागत करती है तुम्हारे ग्राहकों का
गुलाबी मुस्कान से.
जब मैं बैठती हूँ गद्देदार
चक्करदार बिन हत्थेवाली कुर्सी पर,
सपने देखती हूँ खूबसूरत विदेशी जगहों के,
टहलती हुई विशाल सजे-धजे पार्कों में.
इसी बीच मैं देखती हूँ अपनेआप को
झुकी कमर बूढ़ी, लिपटा स्कार्फ
मेरी पतली गर्दन पर,
सुलगती राख को कुरेदते हुए,
लेकिन फिर मैं देखती हूँ
कि मैं चौड़े कुल्हेवाली, लम्बी, मजबूत औरत
दोनों पैर फैलाये,
सन्तान जन रही हूँ.

 कारोल तार्लेन
(कारोल तार्लेन एक मजदूरनीट्रेड यूनियन कार्यकर्त्री और कवियत्री थीं… 2012 उनकी मृत्यु हुई… पहले भी उनकी कविता विकल्प पर प्रकाशित हुई और सराही गयी…)

(अनुवाद दिगम्बर)

No comments:

Post a Comment