Wednesday, October 25, 2017

शिल्पकार की एक रचना

बोनसाई वृक्ष
आकर्षक गमले में उग रहा है
कहीं और वह 
अस्सी फीट ऊँचा हो सकता था
लेकिन किसी पर्वत के किनारे
बिजली की कडक
उसे तोड़ देती.
लेकिन अब एक माली ने
सावधानी से इसे छांट दिया
यह नौ इंच ऊँचा है.
हर दिन उसकी शाखाओं को काटा गया
माली गुनगुनाता है
मेरे मुन्ने, यह तेरा स्वभाव है
नन्हें ही बने रहो
और आराम करो,
घर में ही रहो और गुलबदन बन जाओ;
मेरे नन्हें वृक्ष तू कितना भाग्यशाली है रे
तेरे पास एक गमला है
जहां तू ख़ूब बढे, मोटाये, फले-फूले
तू खूब जिए और खुश रहे.
जीवित प्राणियों के साथ
किसी को बहुत जल्दी ही
खुद को बोनसाई बनाने की कला सीख लेनी' चाहिए
उसे चाहिए कि वह अपने
पैर को बाँध ले,
दिमाग को आराम दे,
बाल घुंघराले बना ले,
और हाथ से केवल
मुलायम प्यार को छुए.
– मार्ज पियार्सी की कविता का भावानुवाद
(विक्रम प्रताप)

इनके बारे में सोचिए लेकिन आप ऐसा नहीं करेंगे

घूँघराले भूरे बालों वाली
उस बच्ची के बारे में सोचिए
जो पुरानी कार की पिछली सीट पर
अपने कुत्ते के साथ सो रही है
और उसके माँ-बाप
कार चलाते आगे की अस्त-व्यस्त सीट पर
जम्हाई ले रहे हैं।

भूरी त्वचा वाले उस बच्चे के बारे में सोचिए
जिसे अश्वेत कहा जाता है
जिससे कहा गया है
कि वह वापस अफ्रीका चला जाये
जिसके महान पूर्वजों ने
स्कूल तक जाने वाली
अमरीकी सड़कों को बनाया था।

बलात्कार से गर्भवती हुई
उस औरत के बारे में सोचिए
जो मजदूरी छोडकर
दो राज्यों को पार कर
गर्भपात के लिए नहीं जा सकी
जो अपने बच्चे को
प्यार करने की जबरन कोशिश करती है
लेकिन वह बच्चा अब अधिकांश
उस घिनौने बलात्कारी जैसा
दिखाई देता है।

उन औरतों और मर्दों के बारे में सोचिए
जो असेंबली लाइन में
तब तक काम करते हैं
जब तक
उनके कान बहरे न हो जाएँ
पीठ झुक न जाये
और किडनी फेल न हो जाये
वे पेन्सन की बकाया राशि चाहते हैं
जो उनकी ज़िंदगी में रोशनी ला दे
लेकिन कंपनी के पास
अपना वादा निभाने का समय नहीं है।

उस परिवार के बारे में सोचिए
जिसका घर बैंक वाले जब्त कर लेंगे
कैंसर की दवा खरीदने की स्थिति में
नहीं रह गया है अब वह परिवार
हर महीने की कैंसर की दवा
पूरे परिवार की मासिक आमदनी के बराबर है
इसलिए उसकी बेटी मर जाएगी
और फिर भी वह परिवार कर्ज में डूबा रहेगा।

लेकिन मेरे सरकार
आप उन्हें देखेंगे भी नहीं
वे इतने तुच्छ जीव हैं।
--मार्ज पियर्सी

(मंथली रिव्यू जून 2017 से साभार)
अनुवाद-विक्रम प्रताप

जिनके पास कम है, वे कम खाएँ (अमरीकी शासकों के प्रति)

ग़रीबों से नफरत, क्या ये गुनाह
बासी हो गया? कि इतना धन है
फिर भी  साजिश रचते हैं दौलतमन्द
एक बच्चे की दवा, एक औरत की जिंदगी,
एक आदमी का दिल और गुर्दा हड़पने के लिए.
जब सांसद उस जनता की बात करते हैं
जो हिसाब बैठाती है गैस और रोटी का
कि ठण्ड और भूख में किसे तरजीह दें
वे गुर्राते हैं. हमारी ये हिम्मत की जिन्दा रहें?
अगर वे बमबारी कर पाते, अगर वे
ग़रीबों के खिलाफ लड़ाई छेड़ पाते
दूसरे देशों की तरह यहाँ, अपने देश में,
क़ानून बनाकर नहीं बल्कि खुलेआम
हथियारों से, तो क्या वे झिझकते?
उनके भीतर सुलगता सच्चा गुस्सा
फूटता है उन कटौतियों में, जो जरूरी हैं
लोगों को जिन्दा रखने के लिए.
जिन लोगों के पास बहुत कम है
उनको सजा देते हैं, और ज्यादा कमी करके-
हमें कुचलनेवाला एक विराट कानूनी बुलडोजर.
–मार्ज पियर्सी

(अनुवाद — दिगम्बर)

दोस्त

हम मेज पर आमने-सामने बैठे
उसने कहा, अपने हाथों को काट डालो.
ये हमेशा चीजों को कुरेदते हैं.
मुझे छू भी सकते हैं ये.
मैंने कहा हाँ.

मेज पर धरा खाना ठंडा हो गया.
उसने कहा, ज़लाओ अपना शरीर
यह साफ़ नहीं  और कामुक गंध आती है इससे
यह मेरे मन घावों को रगड़ता है.
मैंने कहा हाँ.

मैं तुम्हें प्यार करती हूँ, मैंने कहा.
ये तो बहुत अच्छी बात है, उसने कहा
कोई प्रेम करे मुझे पसंद है
इससे मुझे खुशी मिलती है.
तुमने अपने हाथों को काटा कि नहीं ?

--मार्ज पियर्सी

उन नौजवानों से जो कुछ करना चाहते हैं

प्रतिभा उनके लेखे वही है
जो तुम्हें हासिल होती है तभी जब
उपन्यास छप जाय और उसे
हाथोंहाथ लिया जाय. उससे पहले
जो तुम्हारा सरमाया है वह
महज थकानेवाला विभ्रम,
बुनाई करने जैसा कोई शौक.

काम का मायने तभी है
जब नाटक का मंचन हो जाय
और ताली बजाएँ दर्शक.
उससे पहले पूछते रहते हैं दोस्त
कि कब निकल रहे हो
नौकरी तलाशने के लिए.

प्रतिभा का पता तभी चलता है उन्हें
जब तुम्हारी अनूठी कविताओं का
तीसरा संकलन आ जाये. इससे पहले
तुम पर इल्जाम मढते हैं पिछड़ने का
कहते हैं अब तक कोई बाल-बच्चा
क्यों नहीं, तुम्हें लफंगा समझते हैं.

मनोहर नामों से कला की कार्यशाला
क्यों लगाते हैं लोग, जबकि वास्तव में
सीख पाते हो महज कुछेक तकनीक,
टंकण निर्देश और कुछ भाव-भंगिमाएँ.
क्या कलाकार की कमी सिर्फ इतनी
कि दीवार पर लटकाने के लिए
किसी दंतचिकित्सक या पशुचिकित्सक
की तरह होना चाहिए लाइसेन्स
जो आपको प्रमाणित करे
चाहे काहिल और परपीडक हों और
आपके बनाये दाँत शोरबे में गिर पड़ें
आप कहलाएँगे प्रमाणित दंतचिकित्सक.

असली लेखक वही है
जो सचमुच लिखता है. प्रतिभा
एक खोज है ज्वलनशीलता जैसी जो
काम आती है आग लगने-बुझने के बाद.
रचना खुद अपना उपचार है. इसे ही
पसंद करना बेहतर होगा तुम्हारे लिए,
इस बात से बेखबर कि लोग
तुमसे प्यार करें या न करें.
- मार्ज पियर्सी

(अनुवाद- दिगम्बर)

बलात्कार

बलात्कार किये जाने और
सीमेंट के खड़े जीने से धकेल दिये जाने में
कोई फर्क नहीं, सिवाय इसके कि
उस हालत में भीतर-भीतर रिसते हैं ज़ख्म.
बलात्कार किये जाने और
ट्रक से कुचल दिये जाने में
कोई फर्क नहीं, सिवाय इसके कि
उसके बाद मर्द पूछता है –मज़ा आया ?
बलात्कार किये जाने और
किसी ज़हरीले नाग के काटने में
कोई फर्क नहीं, सिवाय इसके कि
लोग पूछते हैं क्या तुमने छोटा स्कर्ट पहना था
और भला क्यों निकली थी घर से अकेली.
बलात्कार किये जाने और
शीशा तोड़कर सर के बल निकलने में
और कोई फर्क नहीं, सिवाय इसके कि
तुम डरने लगती हो
मोटर गाड़ी से नहीं, बल्कि मर्द ज़ात से.
बलात्कारी तुम्हारे प्रेमी का भाई है.
वह सिनेमाघर में बैठता है तुमसे सटकर पॉपकॉर्न खाता हुआ.
बलात्कार पनपता है सामान्य पुरुष के कल्पनालोक में
जैसे कूड़े की ढेर पर गोबरैला.
बलात्कार का भय एक शीतलहर की तरह बहता है
हर समय चुभता किसी औरत के कूबड़ पर.
सनोबर के जंगल से गुजरती रेतीली सड़क पर
कभी अकेले नहीं टहलना,
नहीं चढ़ना किसी निर्ज़न पहाड़ी पगडण्डी पर
बिना मुँह में चाक़ू दबाए
जब देख रही हो किसी मर्द को अपनी ओर आते.
कभी मत खोलना दरवाज़ा किसी दस्तक पर
बिना हाथ में उस्तरा लिये.
हाते के अँधेरे हिस्से का भय,
कार की पिछली सीट का,
भय खाली मकान का
छनछनाती चाभियों का गुच्छा जैसे साँप की चेतावनी
उसकी जेब में पड़ा चाकू इस इंतज़ार में है
कि धीरे से उतार दिया जाय मेरी पसलियों के बीच.
उसकी मुट्ठी में बंद है नफरत.
बलात्कारी की भूमिका में उतरने के लिये काफी है
कि क्या वह देख पाता है तुम्हारी देह को,
छेदने वाली मशीन की नज़र से,
दाहक गैस लैम्प निगाह से,
अश्लील साहित्य और गन्दी फिल्मों की तर्ज़ पर.
जरुरी है बस तुम्हारे शरीर से, तुम्हारी अस्मिता,
तुम्हारे स्व, तुम्हारी कोमल मांसलता से
नफरत करने भर की.
यही काफी है कि तुम्हें नफरत है जिस चीज से,
डरती हो तुम उस शिथिल पराये मांस के साथ जो-जो करने से
उसी के लिये मजबूर किया जाना.
संवेदनशून्य पहियों से सुसज्जित
किसी अपराजेय टैंक की तरह रौंदना,
अधिकार जमाना और सजा देना साथ-साथ,
चीरना-फाड़ना मज़ा लेना, जो विरोध करे उसे क़त्ल करना
भोगना मांसल देह काम-क्रीडा के लिये अनावृत.

मार्ज पियर्सी अमरीकी उपन्यासकार, कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. यह कविता “बलात्कार के खिलाफ नारीवादी संश्रय” नामक संगठन के समाचार पत्र – “रेड वार स्टिक्स” (अंक अप्रील/मई 1975) में प्रकाशित हुई थी. इस कविता में बलात्कार की नृशंसता और उसके विविध आयामों को तीखेपन से अभिव्यंजित किया गया है.

जिसे वे भगवान की लीला कहते हैं

कितना खूबसूरत और जानलेवा है बर्फ.
सड़कें समा गयी हैं इसकी सुरंग में.
बिना बिजली-पानी हजारों हजार लोग
जमी हुई दुनिया में जहाँ भेड़ियों के झुण्ड
की तरह हुंआ-हुंआ करती है हवा.
पहले ही बेइन्तेहाँ हैं ठण्ड से हो रही मौतें
जिसका मतलब है फटे-पुराने कम्बल में
किकुडते, ठिठुरते लोगो की जमघट,
कंपकंपाते बच्चे बंद कर देते हैं कांपना
ठण्ड से अकड़कर समा जाते हैं मौत के मुँह में.
ऊपर से गुजरते बिजली के तारों को
जमीन में दाबना बहुत खर्चीला है,
कहते हैं बिजली कम्पनी के अधिकारी,
जो नहीं झेलते बिजली-पानी का आभाव,
जिन्हें दुबकना नहीं पड़ता ठन्डे अँधेरे में.
आभाव का कोई असर नहीं जिन पर, आभाव
से मरते नहीं जो लोग, वही लेते हैं फैसले.
हम यकीन नहीं करते जलवायु परिवर्तन में
और यही नहीं, लागत और मुनाफे का
अनुपात हमें मुनाफा भी तो देता है.
कृषि व्यापारियों के पानी चुराने और
रिहायशी इलाकों में लॉन की हरियाली के कारण
पड़नेवाला सूखा. घटिया दर्जे के बांधों के चलते
बहते-ढहते मकान. न्यू ओर्लियांस में होता है
पुनर्निर्माण धनाढ्यों और पर्यटकों के लिये
सड़ने और मातम मानने दो गरीब बस्तियों को.
बीमा कम्पनी को आशा है कि उनके भुगतान
की तारीख आते-आते आप बूढ़े हो जायेंगे.
राजनेता दाबे बैठे हैं पुनर्निर्माण का पैसा.
और हम कहते हैं इसे प्राकृतिक आपदा.
– मार्ज पियर्सी

(अमरीकी कवियत्री मार्ग पियार्सी के अठारह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
यह कविता मंथली रिव्यू से आभार सहित लिया गया है. अनुवाद- दिगम्बर)

मुद्दत से चुकता नहीं हुआ उनका हिसाब

क़यामत का जिक्र करना,
उकसाना धोखेबाज़ी और बदनीयती को,
किस्से बुनना ताकि टाला जा सके
बदकिस्मती को-
इनसे बात नहीं बनने वाली.
तेज होती जा रही है ओले बरसाती
हवा. उठ रही हैं ऊँची लहरें और फिर
लौट रही हैं पीछे, बेपर्द करती तलहटी
जिसे कभी देखा नहीं तुमने.
हवा में राख है प्यारे,
हमारे खाने में राख जैसा कोई जायका
सोते वक्त हमारे होठों पर राख
राख से अंधी हुई आँखें.
हमारी रीढ़ गिरवी है जिसे
छुड़ा नहीं सकते हम. किसी ने
हमारे दाँत खरीद लिए और चाहता है
उखाडना उन्हें दाँव पर लगाने के लिए.
असली शैतान छुपे हैं चारपाई के नीचे,
खून के प्यासे. जिस जमीन पर
बना है यह मकान उसके मालिक
शुरू करेंगे यहाँ कोयला खदान.
सांता क्लॉज नहीं आता. आते हैं
किराये के गुंडे. तुम्हारी बुनियाद
गिरवी है और बैंक बेचैन है
पाबन्दी लगाने को तुम्हारे आनेवाले कल पर. 
अगर चाहते हो बचे रहना तो जागो
अगर चाहते हो लड़ना तो आगे बढ़ो
कुछ भी हासिल नहीं होता मुन्तजिर को
केवल भूख के पंजे खरोंचते हैं
खाली पेट के भीतर.
अगर जानते हो अपने लहू की कीमत
तो लड़ो कि वह बहता रहे रगों में.
तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है खोने को
अपनी जिन्दगी के सिवा.
और वह तो दशकों पहले बेंच दी थी
तुम्हारे पुरखों ने उनके हाथों.
बेइंतिहाँ है उनकी हवस
तुम्हारे सब्र की कोई इन्तिहाँ है?
- मार्ज पियर्सी

(मंथली रिव्यू , मई 2012 में प्रकाशित. अनुवाद- दिगम्बर)

Tuesday, October 24, 2017

गरीब अब हमारे साथ नहीं हैं

अब कोई गरीब नहीं रहा
सुनो नेताओं का बयान.
हम देख रहे हैं उन्हें बिलाप करते
उस मध्यवर्ग के लिए
जो सिकुड़ रहा है.
गरीब इस तरह धकेले गए
गुमनामी के गर्त में
कि बयान करना मुमकिन नहीं.
बिलकुल वही बर्ताव
जो कभी कोढियों के साथ होता था,
जहाज में ठूंस कर भेजते थे काला पानी,
यादों से परे सड़ने को धीरे-धीरे.
अगर गरीबी रोग है तो इसके शिकार लोगों को
अलग रखो सबसे काट कर.
सामाजिक समस्या है तो उन्हें
कैद करो ऊँची दीवारों के पीछे.
मुमकिन है यह आनुवंशिक रोग हो-
अक्सर शिकार हो जाते हैं वे आसानी से
रोक-थाम होने लायक रोगों के.
खिलाओ उन्हें कूड़ा-कचरा कि वे मर जाएं
और तुमको खर्च न करना पड़े एक भी कौड़ी
उनके दिल के दौरे या लकवा के इलाज पर.
मुहय्या करो उन्हें सस्ती बंदूकें
कि वे क़त्ल करें एक-दूजे को
तुम्हारी निगाहों से एकदम ओझल.
झोपड़पट्टियाँ ऐसी ही खतरनाक जगहें हैं.
ऐसे स्कूल हो उनके लिए जो उन्हें सिखाए
कि वे कितने बेवकूफ हैं.
लेकिन हमेशा यह दिखावा करो
कि उनका वजूद ही नहीं है,
क्योंकि वे ज्यादा कुछ खरीदते नहीं,
ज्यादा खर्च नहीं करते,
नहीं देते तुमको घूस या चंदा.
उनकी बोदी बचत नहीं है विज्ञापनों का निशाना.
वे असली जनता नहीं है
बहुराष्ट्रीय निगमों की तरह.

-मार्ज पियर्सी 

(मर्ज पियर्सी के अब तक अठारह कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं.
यह कविता मंथली रिव्यू से साभार ले कर अनूदित और प्रस्तुत किया गया है.
अनुवाद- दिगम्बर)