Saturday, December 10, 2011

उषा


प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे


भोर का नभ


राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)


बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से
कि धुल गयी हो


स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
        मल दी हो किसी ने


नील जल में या किसी की
        गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।


और...
        जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।


-शमशेर बहादुर सिंह

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