ऎ मादरे हिन्द न हो ग़मगीन अच्छे दिन आने वाले हैं ।
आज़ादी का पैगाम तुझे हम जल्द सुनाने वाले हैं ॥
माँ तुझको जिन ज़ल्लादों ने दी हैं तक़लीफ़ ज़ईफ़ी में ।
मायूस न हो मग़रूरों को हम ज़ल्द मज़ा चखाने वाले हैं ॥
कमजोर हैं और मुफ़लिस हैं हम गो कुंज कफ़स में बेबस है ।
बेबस है लाख मगर माता, हम आफत के परकाले हैं ।।
हिन्दु और मुसलमाँ मिल करके, चाहे जो कर सकते हैं ।
ऐ चर्ख कुहन हुशियार हो तू, पुरशोर हमारे नाले है ।।
मेरी रूह को करना कैद कफस हनकाम से बाहर है उनके ।
आजाद है अपना दिल शैदा, गो लाख जुबां पर ताले है ।।
मगबूल जो है होगे गालिब महकूम जो है होंगे हाकिम ।
सदा एक सा वक्त रहा किसका , कुदरत के तौर निराले है ।।
आजादी के मतवालों ने यह कैसा मन्त्र चलाया है ।
लरजा है जिस से अर्श समां, सरकार की जान के लाले है ।।
-रामप्रसाद बिस्मिल्ल की पसंद
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