उरुजे कामयाबी पर कभी हिंदोस्तां होगा
रिहा सैयाद के हाथों अपना आशियां होगा।
चखाएंगे मजा़ बरबादी-ए-गुलशन का गुलचीं को
बहार आएगी उस दिन जब अपना बाग़बां होगा।
जुदा मत हो मिरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज
न जाने बादे मुरदन मैं कहां और तू कहां होगा?
वतन की आबरु का पास देखें कौन करता है?
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तेहां होगा।
ये आये दिन की छेड़ अच्छी नही ऐ ख़ंजरे क़ातिल
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा।
शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा।
कभी वो दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीन होगी, जब अपना आसमां होगा।
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