Thursday, December 1, 2011

दूर तक यादे वतन आई थी समझाने को

          हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर ।
          हमको भी पाला था मां बाप ने दुख सह सह कर ।।
          वक्ते रूखसत उन्हें इतना भी न आये कहकर ।
          गोद में आंसू कभी टपके जो रूख से बहकर ।।
          तिफल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को ।।


नौजवानों जो तबियत में तुम्हारी खट के ।
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ।।
आप के आज बदन होवें जुदा कट कट के ।
और सद चाक हो माता का कलेजा फटके ।।
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को ।।


        अपनी किस्मत में अजल से ही सितम रखा था ।
        रंज रक्खा था महिन रक्खा था गम रक्खा था ।।
       किसको परवाह थी और किसमें यह दम रक्खा था।
       हमने जब बादिये गुरवत में कदम रखा था ।।
       दूर तक यादे वतन आई थी समझाने को ।।


अपना कुछ गम नहीं लेकिन यह ख्याल आता है ।
मादरे हिन्द पे कब तक जवाल आता है ।।
हरदयाल आता है योरूप से न अजीत आता है ।
कौम अपनी पै तो रो रो के मलाल आता है ।।
मुन्तजिर रहते है हम खाक में मिल जाने को ।।


-रामप्रसाद बिस्मिल्‍ल

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