हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
ये बात ज़माना याद रखे, मजदूर हैं हम मजबूर नहीं
ये भूख गरीबी बदहाली, हरगिज़ हमको मंजूर नहीं
चलते हैं मशीनों के चक्के, इन चौडे पुट्ठों के बल से
मेहनत से कमाई दौलत को, पूंजी ले जाती है छल से
ये राज़ हमें मालूम मगर, ये हाल हमें मंज़ूर नहीं
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-शंकर शैलेन्द्र
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