आओ आओ भाईयों दिल खोल कर मातम करें
हम शहीदाने वतन की बेकसी का ग़म करें।
साथ वालों ने खुशी से जान दे दी मुल्क पर
रह गये इस फ़िक्र में, बैठे हुये हम क्या करें?
राहे हक़ में जो मरे ज़िन्दा हैं वह ग़म उनका क्या?
जीते जी हम मर गये जीने का अपना गम करें।
मानने की जो न हो वह बात क्यों कर मान लें
ग़ैर मुमकिन हम उदू के सामने सर ख़म करें ।
आप ही खिलवत में काटें अपने भाई का गला
आप ही फिर बैथ कर अहबाब में मातम करें ।
जब यह हालत हो हमारे मुल्क के इफराद की
ज़ुल्म के अगियार के हम चश्म क्या पुरनम करें ?
बहुत रोये अब तो ’ बिस्मिल’ रोने से होता क्या ?
काम इन कैसा करें अब आबोनाला कम करें ।
-रामप्रसाद बिस्मिल्ल
हम शहीदाने वतन की बेकसी का ग़म करें।
साथ वालों ने खुशी से जान दे दी मुल्क पर
रह गये इस फ़िक्र में, बैठे हुये हम क्या करें?
राहे हक़ में जो मरे ज़िन्दा हैं वह ग़म उनका क्या?
जीते जी हम मर गये जीने का अपना गम करें।
मानने की जो न हो वह बात क्यों कर मान लें
ग़ैर मुमकिन हम उदू के सामने सर ख़म करें ।
आप ही खिलवत में काटें अपने भाई का गला
आप ही फिर बैथ कर अहबाब में मातम करें ।
जब यह हालत हो हमारे मुल्क के इफराद की
ज़ुल्म के अगियार के हम चश्म क्या पुरनम करें ?
बहुत रोये अब तो ’ बिस्मिल’ रोने से होता क्या ?
काम इन कैसा करें अब आबोनाला कम करें ।
-रामप्रसाद बिस्मिल्ल
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