Friday, January 13, 2012

पढ़िए गीता

पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइए ।

होंय कँटीली
आँखें गीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइए । 


-रघुवीर सहाय

आप की हँसी

निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे 

-रघुवीर सहाय

अरे अब ऐसी कविता लिखो

अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छंद घूमकर आय
घुमड़ता जाय देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराय

कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूं
वही दो बार शब्द बन जाय
बताऊँ बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराय

अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाय
न कोई पुलक-पुलक रह जाय
न कोई बेमतलब अकुलाय

छंद से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय
थामकर हँसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय ।

-रघुवीर सहाय

अधिनायक

राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल

सिंहासन पर बैठा,उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।

-रघुवीर सहाय

गुलामी

मनुष्य के कल्याण के लिए
पहले उसे इतना भूखा रखो कि वह औऱ कुछ
सोच न पाए
फिर उसे कहो कि तुम्हारी पहली ज़रूरत रोटी है
जिसके लिए वह गुलाम होना भी मंज़ूर करेगा
फिर तो उसे यह बताना रह जाएगा कि
अपनों की गुलामी विदेशियों की गुलामी से बेहतर है
और विदेशियों की गुलामी वे अपने करते हों
जिनकी गुलामी तुम करते हो तो वह भी क्या बुरी है
तुम्हें रोटी तो मिल रही है एक जून।


- रघुवीर सहाय

Sunday, January 1, 2012

बेरुजगारी बड़ी बीमारी

       बेरुजगारी बड़ी बीमारी फैली बीच हमारे
       पढ़े लिखे भी भारत के माह हांडे मारे–मारे
ग्यारा की औकात कहे जिस बी.ए. एम.ए. रोवें से
काट-काट दफ्तर के चक्कर आके भूके सोवें से
       खोया से न्यूएं पढ़ के पैसा बात जाठा सारे
       पढ़े लिखे भी...
मंत्रियो ने वजह बताई जनसंख्या बेकारी की
असली जड़ सरमाएदारी पाई उस बेमारी की
       इस ए कारण हुई मंहगाई दीखे दिन में तारे
       पढ़े लिखे भी...
भूखे प्यासे मात पिता रह म्हारी फीस पुगावें से
सोचें बेटा बनेगा अफसर आस घणी ले आवें से
       जित जा पहला मांगे रिश्वत मीट और बोतल न्यारे
       पढ़े लिखे भी...
हल हो ज्या यो बेकारी जो मिलके हम संघर्ष करें
तोड़ के ढांचा गला सडा यो अच्छे की जो नींव धरें
       कह किसान हो सुखी जो मिट जा ये शोषक हत्यारे
       पढ़े लिखे भी...

कचहरी के मारे का गीत

ऐसे  धरे धूप ने धौल
      देह सब कारी है गयी है,
कारी है गयी है, देह सब कारी है गयी है!
      जब चाहे तब पाँय भगाए
कोट कचहरी ने,
     जब पहुंचे तारीख डारी दई,
गूंगी बहरी ने,
इतनी करी परेड, देह सरकारी है गयी है!
इतवकील, उत थानेदारी
     लोहू पीवत है
दोनों तरफ गाँठ के ग्राहक
     बड़ी मुसीबत है,
इनके मारे भूख–प्यास, पटवारी है गयी है!
मंहगाई की मार, गवाही
     वारेन के नखरे,
पेट काटि के झेले तबहूँ, पूरे नाहिं परे
सुन लौ सारौ गाम, गरीबी गारी है गयी है!
     ऐसे धरे धूप ने धौल
देह सब कारी है गयी है.

-रमेश रंजक 

बड़ी-बड़ी कोठिया सजाये पूंजीपतिया

बड़ी-बड़ी कोठिया सजाये पूंजीपतिया
की दुखिया के रोटिया चोराए-चोराए
अपने महलिया में करे उजियरवा
की बिजोरी के रडवा जराए–जराए

कत्तो बने भिटवा कतहुं बने गडही
कत्तो बने महल कतहुं बने मडई
मटिया के दियना तूही त बुझवाया
की सोनवा के बनवा डोलाए-डोलाए
बड़ी–बड़ी कोठिया...

मिलिया में खून जरे खेत में पसीनवां 
तबहुं न मिलिहें पेट भर दनवां
अपनी गोदमिया तूही त भरवाया
की बड़े बड़े बोरवा सियाए-सियाए
बड़ी–बड़ी कोठिया...

राम अउर रहीम के ताखे पे धइके लाला
खोई के ईमनवा बटोरे धन काला
देसवा कs हमरे तू लूट के खाया
कई गुना दमवा बढा-बढा
बड़ी-बड़ी कोठिया...

जेतs करे काम छोट कहवावे
ऊ बा बड मनई जे जतन बतावे
दस के ससनवा नब्बे पे करवावे
इहे परिपाटिया चला-चला
बड़ी-बड़ी कोठिया...

जुड होई छतिया तनिक दऊ बरसा
अब त महलिया में खुलिहें मदरसा
दुखिया का लरिका पढ़े बदे जइहें
छोट बड टोलिया बना-बना
बड़ी-बड़ी कोठिया...

बिनु काटे भिटवा गडहिया न पटिहें
अपने खुशी से धन धरती न बटिहें
जनता कs तलवा तिजोरिया पे लागिहें
कि महल में बजना बजाए-बजा
बड़ी-बड़ी कोठिया...
-जमुई खां आज़ाद

नदिया के पार

नइया लगाव तनी भइया हो मलहवा
जाए के बा नदिया के पार
उहे बाटे लउकत धुंधर दियरवा
जहां बाटे घरवा हमार.
नदी का किछरवा बसल मोर गइयाँ
जन्हवा बितल भइया मोर लइकइयाँ
पेटवा के जरल धइनी कलकतिया
बिपति में केहू नाही होखेला संघतिया
पांचवे बरिस पर जात बानी घरवा
धरकत मनवा हमार. नइया लगाव...
बुढवा हो गइनी हम करके नौकरिया
तबहू त रही गइल सुखवा सपनवां
पतिया लिखाई ईया भेजे कल्पनवां
फिकिर से तडफत रहत परनवां
बाड़ी मोर ईयवा बेमार. नइया लगाव...      
हमहू बेहाल नाहीं छुटत जडइया
सथवा में बाटे खाली लाइ के गठरिया
घरनी हमार उंहा करे मजदूरिया
रोई रोई पेन्हे एगो झिरकुट सडिया
गिरल बुझात मोर टुटही मरइया
कइसे इ बेडा होई पार. नइया लगाव...
दऊरल आई जब नन्हका लइकवा
मांगे लागी जब लाल भगई अउ मीठवा
फाटि जइहे भइया मोर पत्थर करेजवा
अंखिया में लोर नाहीं बचल धीरजवा
चारु ओर भइल अन्हार ना सूझत किछु
नैया पडल मजधार, नइया लगाव...
-बसंत कुमार

इंटरनेशनल


उठ जाग ओ भूखे बंदी
अब खीचो लाल तलवार
कब तक सहोगे भाई ज़ालिम का अत्याचार
तुम्हारे रक्त से रंजित क्रंदन
अब दसों दिशा लाल रंग
सौ–सौ बरस के बंधन एक साथ करेंगे भंग
ये अंतिम जंग है इसको जीतेंगे हम एक साथ
गाओ इंटरनेशनलSSS भव स्वतंत्रता का गान.

-यूजीन पोतिए

शमा जलाइए


अब आगे बढ़कर आप एक शम्मा जलाइए
इस अहले सियासत का अँधेरा मिटाइए.
      अब छोडिये आकाश में नारे उछालना 
      आकर हमारे कंधे से कंधा मिलाइए.
जुल्मों सितम की आग लगी है यहाँ-वहाँ
पानी से नहीं आग से इसको बुझाइए.
      हैवानियत की आग ये फैला रहे नेता
      शरीफों से गुजारिश है की मैदान में आइये.
क्यों कर रहे हैं आंधियां रुकने का इंतज़ार
ये जंग है, इस जंग में ताकत लगाइए.

गाँव-गाँव से उठो...


गाँव-गाँव से उठो बस्ती-बस्ती से उठो
इस देश की  सूरत बदलने के लिए उठो 
      हाथ में जिसके कलम है कलम लेके उठो
      बाजा बजाने वाले तुम  बाजा लेके उठो
गाँव से उठो बस्ती-बस्ती से उठो
इस देश की  सूरत बदलने के लिए उठो
      हाथ में जिसके औजार है औजार लेके उठो
      पास में जिसके कुछ भी नहीं आवाज़ लेके उठो
गाँव से उठो बस्ती-बस्ती से उठो
इस देश की  सूरत बदलने के लिए उठो
(एक नेपाली गीत का हिंदी रूपांतर)

हम जंगे–आवामी से कोहराम मचा देंगे


हर दिल में बगावत के शोलों को जला देंगे
हम जंगे आवामी से कोहराम मचा देंगे
कोहराम मचा देंगे, कोहराम मचा देंगे.
 
     हो जायेगी दुनिया फिर तेरे नसीबों की
     मजदूर किसानों की भूखों की, गरीबों की
     रौंदे हुए ज़र्रों को खुर्शीद बना देंगे
     खुर्शीद बना देंगे, खुर्शीद बना देंगे.
 
मजलूम जो उठ बैठे हर जुल्म पे भारी है
ये खेत हमारेहैं मिलें भी हमारी हैं
हर चीज हमारी है, हाकिम को बता देंगे
हाकिम को बता देंगे, हाकिम को बता देंगे.

      किस्मत के खिलौने से बहलाया गया हमको
      धोखों से फरेबों से भरमाया गया हमको
      ये झूठ का सिंहासन ठोकर से गिरा देंगे
      ठोकर से गिरा देंगे, ठोकर से गिरा देंगे
 
कुछ सोच कर ही हमने तलवार निकाली है 
हालात से तंग आकार बन्दूक संभाली है
अब खूनसितमगर से धरती को सजा देंगे
धरती को सजा देंगे, धरती को सजा देंगे.

      दिल्ली के खुदाबंदो
      दिल्ली के खुदाबंदो
      दिल्ली के खुदाबंदो एलान  हमारा है
      ऐ कातिल बदकारो  फरमान हमारा है
      तुम दुश्मने इंसान हो, हम तख़्त उड़ा देंगे
      हम तख़्त उड़ा देंगे, हम तख़्त उड़ा देंगे
               हम जंगे आवामी ...
 -जगमोहन जोशी 

यह ताना बाना बदलेगा


गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा
तू खुद तो बदल, तू खुद तो बदल, बदलेगा ज़माना बदलेगा!
रावी की रवानी बदलेगी, सतलज का मुहाना बदलेगा
गर शौक में तेरे जोश रहा, तस्बीह का दाना बदलेगा!
 
यह मुर्दा नुमाइश भूखों की, यह उजड़े चमन बेकारों के
जूठन पे सड़क की जीते हुए शहजादे सुर्ख बहारों के,
यह होली खून पसीनों की, नीलामी हुस्न-हसीनों की
बेजार हो, बेजार हो, यह सारा फ़साना बदलेगा!
गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा!

ऊँचे है इतने महल की हर इंसान का जीना मुश्किल है
मंदिर-मस्जिद की बस्ती में ईमान का जीना मुश्किल है,
रफ़्तार जरा कुछ और बढ़ा, आवाज़ जरा कुछ और बढ़ा
फिर शीशा नहीं, साकी ही नहीं, सारा मयखाना  बदलेगा!
गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा!

सूरज की मशालें थामे हुए, जिस दम कि जवानी चलती है
पूरब से लगातार पश्चिम तक सबकी तक़दीर बदलती है,
तूफान को आँख दिखाने दो, बिजली को तड़प कर आने दो
जीने का तरीका बदलेगा, मरने  का बहाना बदलेगा!
गंगा की कसम, जमना की कसम, यह ताना बाना बदलेगा!

तू खुद तो बदल, तू खुद तो बदल, बदलेगा जमाना बदलेगा
रावी की रवानी बदलेगी, सतलज का मुहाना बदलेगा
गर शौक में तेरे जोश रहा , तस्बीह का दाना बदलेगा!
-नीरज 

इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें

इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें
जिंदगी आंसुओं में नहायी हो
     शाम सहमी हो, रात हो डरी
     भोर की आँख फिर डबडबाई हो
सूर्य पर बादलों का पहरा रहे
रौशनी रोशनाई में डूबी हो.
     यूँ ईमान फुटपाथ पर हो खड़ा
     हर समय आत्मा सबकी ऊबी हो
आसमान में टंगी हो खुशहालियां
कैद महलों में सबकी कमाई हो
इसलिए राह ...

कोई अपनी खुशी के लिए गैर की 
रोटियाँ छीन ले हम नहीं चाहते 
             छींटकर थोड़ा चारा कोई उम्र की 
             हर खुशी बीन ले हम नहीं चाहते 
हो किसी के लिए मखमली बिस्तरा
और किसी के लिए एक चटाई न हो 
इसलिए राह ...

अब तमन्नायें फिर करें ख़ुदकुशी
ख्वाब पर खौफ की  चौकासी रहे
      श्रम के पावों में हो पड़ी बेडियाँ
      शक्ति की पीठ अब ज्यादती सहे
दम तोड़े कही भूख से बचपना
रोटियों के लिए फिर लड़ाई हो
इसलिए राह ...
-वशिष्ठ अनूप